करीब डेढ़ हज़ार साल पहले की बात है, जब भारत के दक्षिणी तटों (South India Coast) पर अरब देशों (Arabic Countries) के साथ कारोबारी रिश्ते थे. मालाबार तटों पर अरब के व्यापारी अपने जहाज़ और बेड़े मसालों, मेवाओं और दूसरी चीज़ें खरीद फरोख्त के लिए लाया करते थे. ये बात इस्लाम के जन्म (Islam Origin) से पहले की है. सातवीं सदी से इस्लाम का प्रचार प्रसार होना शुरू हुआ और पैगंबर मोहम्मद (Prophet Mohammad) के संदेशों का भी. इस प्रचार प्रसार में ये कारोबारी रिश्ते काफी सहायक साबित हुए और ऐसे ही जहाज़ों के साथ धर्म प्रचारकों की यात्राओं की शुरुआत हुई. उसी वक्त भारत के दक्षिणी तटों पर इस्लाम के प्रचारकों की यात्राओं की चर्चा की जाती है.
दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया (South East Asia) के बीच कारोबार का प्रमुख केंद्र मालाबार का तट (Malabar Coast) था, जिसका बड़ा हिस्सा अब केरल प्रांत (Kerala State) की सीमा में है. इस तट पर पहले से आने वाले कुछ कारोबारी भी धर्म प्रचारक बन चुके थे और उनके साथ बाकायदा कुछ धर्म प्रचारक भी हुआ करते थे, जो उस समय केरल में नए इस्लाम धर्म और मोहम्मद साहब के संदेशों का प्रचार करने लगे. इतिहास के हवाले से कहा जाता है कि नतीजा ये हुआ कि केरल के तटीय इलाकों के लोग इस्लाम कबूल (Islam Coversion) करने लगे. यहां से शुरू हुई राजा की कहानी.
तटीय इलाकों के पास एक राज्य था कोडुनगल्लूर और यहां चेरामन राजाओं का शासन हुआ करता था. ये ब्राह्मण वंश के शासक माने जाते हैं. एके अम्पोट्टी लिखित 'ग्लिम्प्सेज़ ऑफ इस्लाम इन केरल' और एसएन सदाशिवन लिखित 'कास्ट इनवेड्स केरल, ए सोशल हिस्ट्री ऑफ इंडिया' में इस पूरे प्रसंग का उल्लेख है कि कैसे चेरामन राजा ने इस्लाम कबूल किया था.
चांद के इशारे से पैगंबर तक पहुंचने का सफर
पेरूमल इस घटना का अर्थ समझना चाहता था और उसी दौरान हज़रत मोहम्मद के कुछ दूत कोडुनगल्लूर पहुंचे थे. उनके साथ पेरूमल ने चांद की उस घटना की चर्चा की तो राजा के सवालों के जवाब देने का नतीजा ये हुआ कि दूतों की बात मानकर पेरूमल मक्का जाकर हज़रत मोहम्मद से मिलने के लिए तैयार हुआ और सफ़र पर निकला.